अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप , जो देश के 45वें राष्ट्रपति बनने के बाद अब दूसरी बार 47वें राष्ट्रपति बने हैं, एक बार फिर अपनी अस्थिर और अप्रत्याशित नीतियों के लिए चर्चा में हैं। अपने रियल एस्टेट साम्राज्य की तरह ही उन्होंने अमेरिकी विदेश और व्यापार नीति को भी ‘डीलमेकिं’ के अंदाज में ढाल लिया है। ट्रंप का मानना है कि जटिल वार्ता में केवल चतुर लोग ही सफल हो सकते हैं और इसी रणनीति को वे ‘वीविंग’ यानी ‘बुनाई’ कहते हैं।
ट्रंप का यह अंदाज कोई नई बात नहीं है। 1997 में, जब वे वित्तीय संकट में थे, उन्होंने जापानी निवेशकों से मिलने की योजना बनाई थी। मकसद था ट्रंप टावर बेचकर पैसे जुटाना। लेकिन बैठक में उन्होंने बिक्री की बात तक नहीं की। उन्होंने न्यूयॉर्क की विविधता की बातें कर डालीं और नतीजतन उन्हें 10 करोड़ डॉलर की निवेश राशि मिल गई, लेकिन एक अलग परियोजना के लिए। ट्रंप इसे अपनी ‘वीविंग’ शैली का उदाहरण मानते हैं।
अब राष्ट्रपति के रूप में भी वह यही तरीका अपना रहे हैं। अप्रैल 2 को ‘लिबरेशन डे’ जैसा विवादास्पद नाम देकर ट्रंप ने अपनी अनोखी कूटनीति पर मुहर लगाई। फरवरी में उन्होंने चीन और कनाडा से आने वाले सामान पर अचानक शुल्क लगा दिया। मार्च में उन्होंने स्टील, एल्युमिनियम और ऑटोमोबाइल सेक्टर पर भी सुरक्षा कारणों से शुल्क लगाया। जब कानूनी विशेषज्ञों और बाजारों ने विरोध किया तो यह कदम कुछ समय के लिए रोका गया। लेकिन यह विराम अस्थायी ही रहा। जल्द ही उन्होंने कई देशों को निशाना बनाया और इसे अमेरिका के ट्रेड डेफिसिट के खिलाफ अभियान बताया।
अपने एक चुनावी रैली में ट्रंप ने 20 दिनों में 200 व्यापार समझौते करने का दावा किया था। हकीकत में अब तक केवल दो हुए हैं, जिनमें से सिर्फ ब्रिटेन वाला ही व्यापक माना जा रहा है।
हाल ही में ट्र्रंप ने व्यापार शुल्कों को विदेश नीति के हथियार के रूप में भी इस्तेमाल करना शुरू किया है। कोलंबिया को धमकी दी गई क्योंकि उसने अमेरिका से निर्वासित प्रवासियों को लेने से इंकार किया। कनाडा पर डिजिटल सेवा कर के चलते शुल्क लगाए गए, जो अमेरिकी टेक कंपनियों को प्रभावित करता था। दोनों ही मामलों में ट्रंप प्रशासन ने इसे अपनी जीत के तौर पर पेश किया और अब यह रणनीति और आक्रामक होती जा रही है।
ट्रंप ने यहां तक दावा किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में भी उनके व्यापारिक दबाव ने भूमिका निभाई। अब उन्होंने रूस को भी चेतावनी दी है कि अगर उसने 50 दिनों में अपने युद्ध प्रयास नहीं रोके तो उस पर भी शुल्क लगाए जाएंगे।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप वैश्विक व्यापार नियमों को अपनी मर्जी से लिखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसकी कीमत भी दिखने लगी है। उनकी ‘अप्रत्याशितता’ ने वैश्विक व्यापार नियमों को उलझा दिया है, बाजारों में घबराहट फैलाई है और निवेश के माहौल को ठंडा किया है।
ट्रंप के आलोचकों का कहना है कि ‘वीविंग’ और ‘अनरैवलिंग के बीच एक पतली रेखा होती है। उनकी रणनीति से अल्पकालिक जीत तो मिल सकती है, लेकिन यह दीर्घकालिक भरोसे को खत्म कर देती है। चाहे दुनिया उनकी नीति से सहमत हो या नहीं, इसके परिणाम अब वैश्विक बोर्डरूक्वस, ट्रेडिंग, क्रलोर्स और कूटनीतिक चर्चाओं में दिखने लगे हैं।
ट्रंप का कार्यकाल भी उनकी गगनचुंबी इमारतों की तरह परत दर परत बनता जा रहा है, एक ऐसे ब्लूप्रिंट पर जिसे कोई और समझ नहीं पा रहा। यह देखना बाकी है कि यह इमारत अमेरिकी शक्ति का प्रतीक बनेगी या अपने ही बोझ तले ढह जाएगी।
सौदेबाजी की कला : ट्रंप और टैरिफ नीति में बदलाव
