-अशोक भाटिया
कई बार ऐसा होता है कि विपक्ष अपनी रणनीति बना लेता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस रणनीति के बीच अचानक ऐसा दांव खेल देते हैं कि विपक्षी खेमा चकरा जाता है। एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का नाम सामने आना ऐसा ही मास्टरस्ट्रोक है। आपको याद होगा, जब जगदीप धनखड़ को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति के लिए कैंडिडेट चुना था तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दुविधा में फंस गई थीं। क्योंकि धनखड़ तब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हुआ करते थे और ममता विपक्षी दलों की टीम में थीं। आखिर उन्होंने धनखड़ को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। अब यही दुविधा उद्धव ठाकरे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के सामने आ गई है।
पीएम मोदी ने सीपी राधाकृष्णन का नाम आगे बढ़ाकर इन दोनों नेताओं के लिए मुिश्कलें बढ़ा दी हैं। उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल ये है कि अगर वे राधाकृष्णन को समर्थन नहीं देते हैं, तो यह सीधा मैसेज जाएगा कि उन्होंने अपने ही राज्यपाल के खिलाफ जाकर वोट किया। राजनीति में यह बात जनता और विपक्ष दोनों ही आसानी से पकड़ लेते हैं। यही वजह है कि संजय राउत ने तुरंत कहा, राधाकृष्णन जी बहुत अच्छे इंसान हैं, विवादास्पद नहीं हैं और उनके पास अनुभव है। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। संजय राउत का बयान संकेत है कि उद्धव ठाकरे इस मामले में बहुत आगे जाकर खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगे। उनके पास सिर्फ दो विकल्प हैं या तो चुप्पी साध लें या समर्थन कर दें।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी असमंजस में आएंगे। वजह यह है कि सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के हैं और उन्होंने हमेशा अपने को ‘प्राउड आरएसएस कैडर’ बताया है। अब स्टालिन अगर उन्हें समर्थन देते हैं तो डीएमके के वोटरों में सवाल उठेगा कि आखिर स्टालिन ने एक आरएसएस विचारधारा वाले नेता का समर्थन क्यों किया। और अगर विरोध करते हैं, तो यह आरोप लगेगा कि उन्होंने तमिलनाडु के सपूत को ही नकार दिया। यानी स्टालिन के लिए भी यह चुनाव ‘हां’ या ‘ना’ दोनों में फंसा हुआ है।
मोदी और शाह की राजनीति की खासियत यह है कि वे चुनावी मुकाबले को सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं मानते, बल्कि उसे मनोवैज्ञानिक लड़ाई बना देते हैं। राधाकृष्णन का नाम घोषित कर वे एक तीर से तीन निशाने साध चुके हैं। उद्धव ठाकरे को मजबूर कर दिया कि वे विरोध न कर पाएं। स्टालिन को ऐसी स्थिति में डाल दिया कि कोई भी फैसला उनके लिए भारी पड़े। राहुल गांधी को कमजोर दिखा दिया, क्योंकि विपक्षी एकता अब सवालों के घेरे में आ गई। अगर उद्धव ठाकरे और स्टालिन जैसे बड़े चेहरे समर्थन की तरफ झुकते हैं, तो विपक्षी गठबंधन में दरार साफ दिखाई देगी। उनके वोट भी कम हो जाएंगे। सीपी राधाकृष्णन अनुभवी हैं। वे अभी चार राज्यों में संवैधानिक जिक्वमेदारी संभाल चुके हैं। इनमें महाराष्ट्र, तेलंगाना, पुडुचेरी, झारखंड शामिल हैं।
सीपी राधाकृष्णन का पूरा नाम चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन है। उनका जन्म जन्म 20 अक्टूबर 1957 को हुआ था। उन्होंने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की पढ़ाई की। उनका राजनीतिक सफर आरएसएस से शुरू हुआ। 1974 में वे भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने। ये ओबीसी समुदाय कोंगु वेल्लार (गाउंडर) से आते हैं। इनकी पत्नी का नाम आर. सुमति है। वहीं, साल 1996 में इनको भाजपा तमिलनाडु का सचिव बनाया गया। इसके बाद 1998 में कोयंबटूर से ये पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए और 1999 में फिर से जीत का परचम लहराया। साथ ही संसद में उन्होंने टेक्सटाइल पर स्थायी समिति के अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया है। ये पीएसयू समिति, वित्त पर परामर्श समिति और शेयर बाजार घोटाले की जांच करने वाली विशेष समिति के सदस्य भी रहे हैं। साल 2004 में इन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को भारतीय संसदीय दल के हिस्से के रूप में संबोधित भी किया है। ये ताइवान जाने वाले पहले संसदीय प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा थे।
2004 से 2007 तक वे भाजपा तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने 19,000 किलोमीटर लंबी रथयात्रा निकाली, जो 93 दिनों तक चली। इस यात्रा में उन्होंने नदियों को जोडऩे, आतंकवाद खत्म करने, समान नागरिक संहिता लागू करने, छुआछूत समाप्त करने और मादक पदार्थों के खिलाफ अभियान जैसे मुद्दे उठाए। माना जाता है इस यात्रा से इनका राजनीतिक कद और बढ़ गया था। इसके अलावा उन्होंने दो पदयात्राएं भी कीं। 2016 से 2020 तक वे कोचीन स्थित कोयर बोर्ड के अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में कोयर निर्यात 2532 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंचा। 2020 से 2022 तक वे भाजपा के ऑल इंडिया प्रभारी रहे और उन्हें केरल का जिक्वमा सौंपा गया।18 फरवरी 2023 को उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। उन्होंने मात्र चार महीनों में राज्य के सभी 24 जिलों का दौरा किया और जनता व प्रशासन से सीधे संवाद किया। 31 जुलाई 2024 को उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया। इसी बीच साल 2024 में इन्हें तेलंगाना का भी राज्यपाल बनाया गया था। इतना ही नहीं, ये पुड्डुचेरी के उपराज्यपाल भी बनाए जा चुके हैं। सीपी राधाकृष्णन एक अच्छे खिलाड़ी भी रहे हैं। कॉलेज स्तर पर वे टेबल टेनिस चैंपियन और लंबी दूरी के धावक रहे। इसके अलावा उन्हें क्रिेट और वॉलीबॉल का भी शौक रहा है। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, चीन और कई यूरोपीय देशों सहित दुनिया के कई हिस्सों की यात्राएं की हैं।
एनडीए के सं याबल को देखते हुए उनका निर्वाचन तय है। 68 साल के सीपी राधाकृष्णन उम्र के लिहाज से भी मुफीद हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उम्र 74 साल थी। सी पी राधाकृष्णनन पीएम मोदी से लंबे समय से जुड़े हैं। तमिलनाडु में उन्हें कोयंबटूर के अजातशत्रु और वाजपेयी ऑफ कोयंबटूर कहा जाता है। राधाकृष्णनन स्वच्छ छवि वाले सर्वमान्य नेता रहे हैं। वह अभी तक स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता के प्रबल समर्थक हैं।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के उक्वमीदवारों के नामों पर विपक्ष में पहले भी सेंध लगती रही है। ऐसे में राधाकृष्णन की उक्वमीदवारी विपक्षी एकता की भी परीक्षा मानी जा रही है। पिछले कुछ चुनावों के उदाहरण देखें तो विभिन्न कारणों से विपक्ष के खेमे में फूट पड़ती रही है और इस बार डीएमके के सामने सबसे बड़ी दुविधा होगी। राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति पद की उक्वमीदवारी को एनडीए का बेहद सोचा समझा कदम माना जा रहा है। साथ ही इसे दक्षिण भारत में भाजपा की राजनीतिक पकड़ मजबूत करने की रणनीति से जोडक़र भी देखा जा रहा है।
विपक्ष में कैसे पड़ी फूट, इन उदाहरणों से समझिए-यूपीए ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रतिभा पाटिल को उम्मीदवार बनाया था और इस पर महाराष्ट्र की होने के नाते शिवसेना ने एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था। इसी तरह जब यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को जब राष्ट्रपति पद का उक्वमीदवार बनाया था, तब भी एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद शिवसेना और जेडीयू ने उनका समर्थन किया था। रामनाथ कोविंद को जब एनडीए ने राष्ट्रपति पद का उक्वमीदवार बनाया था तब जेडीयू ने विपक्ष में रहने के बावजूद समर्थन किया था क्योंकि वे बिहार के गवर्नर थे। इसी तरह जब एनडीए ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया तब तृणमल कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था और धनखड़ सर्वाधिक मतों से जीतने वाले उपराष्ट्रपतियों में से एक बने थे।
हालांकि इंडिया गठबंधन ने भी अपना उक्वमीदवार खड़ा करने का फैसला किया है। लिहाजा बीजेपी विरोधी पार्टियों का रुख इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वह उम्मीदवार कौन होगा। सीपी राधाकृष्णन के चुनाव की कमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संभालेंगे। वहीं संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू सी पी राधाकृष्णन के इलेक्शन एजेंट होंगे।
आपको बता दें कि पिछले महीने जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद चुनाव आयोग ने कुछ समय पहले उपराष्ट्रपति पद के इलेक्शन का चुनावी कार्यक्र तय किया था। यह चुनाव 9 सितंबर को होगा। चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार, नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 अगस्त है और दस्तावेजों की जांच 22 अगस्त को की जाएगी।
-अशोक भाटिया,
-वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार
मो : 221232130
भाजपा ने राधाकृष्णन के नाम का ऐलान कर एक तीर से साधे कई निशाने
