– डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी, चिकित्सक एवं लेखक
यूं तो देश में आवारा कुत्तों के संकट को लेकर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली के आवारा कुत्तों को लेकर आए सख्त निर्देश ने इस बहस को नया मोड़ दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार व स्थानीय निकायों से कहा है कि सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित किया जाए। हालांकि समस्या की व्यवहारिक दिक्कतों को लेकर कई यक्ष प्रश्न खड़े हैं क्योंकि फिलहाल कुत्तों के लिए ऐसे आश्रय स्थल उपलब्ध ही नहीं हैं।
निस्संदेह, जन सुरक्षा की चिंताएं अपनी जगह जायज हैं। बताते हैं कि दिल्ली में रोजाना 2000 तक कुत्ते के काटने की घटनाएं होती हैं। साथ ही रेबीज के मामले भी बढ़ रहे हैं। लेकिन इस बड़ी समस्या का समाधान सिर्फ प्रतिक्रियात्मक नहीं होना चाहिए। बीते साल देशभर में कुत्तों के काटने के 22 लाख मामले सामने आए थे। यह एक जटिल चुनौती है और इसके समाधान के लिए एक दीर्घकालिक, तार्किक व परामर्शी रणनीति की आवश्यकता है। इस अभियान में नगर निकाय, पशु चिकित्सक, पशु कल्याण संगठनों और स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूरी है।
संकट की जड़ें
निर्विवाद रूप से इस संकट के मूल में खराब शहरी नियोजन, पशु जन्म नियंत्रण (ABC) तथा टीकाकरण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से जुड़ी खामियां हैं। देश के शहरों, कस्बों और गांवों में कूड़े के ढेर और खुले बूचड़खानों का कचरा आवारा कुत्तों की आबादी बढ़ा रहा है। नगर निकायों द्वारा वर्षों से चलाए जा रहे नसबंदी अभियान और रेबीज-रोधी टीकाकरण अभियान इन कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं। बजट की कमी और कर्मचारियों की कमी इन प्रयासों में बाधा डालती रही है।
परंपरा और मान्यताएं
सड़कों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने को लेकर अक्सर टकराव देखा जाता है। दरअसल, भारत में पशु प्रेमियों की एक बड़ी आबादी है। हमारे यहां पशु-पक्षियों के कल्याण व संरक्षण की समृद्ध परंपरा रही है। गाय और श्वान को अन्न देना संस्कृति का हिस्सा है। श्राद्ध के अवसर पर गाय, कौवे और कुत्ते के लिए अन्न निकालने की परंपरा रही है। कहा जाता है कि पांडवों के स्वर्गारोहण के समय उनके साथ एक श्वान भी चला था।
लेकिन आधुनिक शहरी जीवन में पालतू कुत्तों की भूमिका सीमित होने के कारण उनकी बड़ी संख्या सड़कों पर आ गई है। उनके आक्रामक होने के पीछे कारण हैं—कचरे में फेंका गया मांसाहारी भोजन, असुरक्षा बोध और भूख।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के हमलों और रेबीज से मौत की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने इसे बेहद चिंताजनक और डराने वाला बताया। केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री एस.पी. सिंह बघेल ने 22 जुलाई को लोकसभा में बताया था कि 2024 में 37 लाख से ज्यादा डॉग बाइट्स के मामले सामने आए और 54 लोगों की मौत रेबीज से हुई। हाल ही में दिल्ली में छह वर्षीय बच्ची छवि शर्मा की डॉग बाइट के बाद मौत का मामला सामने आया था।
जस्टिस जे.बी. परदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने इस रिपोर्ट को “बेहद परेशान करने वाला” बताया और इसे जनहित याचिका के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि हर दिन दिल्ली और आसपास के इलाकों में कुत्तों के काटने के सैकड़ों मामले सामने आ रहे हैं। खासतौर पर बच्चे और बुजुर्ग इसकी चपेट में आ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को आदेश दिया कि सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर दिल्ली-एनसीआर के आवासीय क्षेत्रों से हटाकर शेल्टर होम्स में भेजा जाए। साथ ही चेतावनी दी कि इस कार्य में बाधा डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय उदाहरण
विदेशों में इस समस्या से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए गए। पालतू कुत्तों को पालना महंगा बनाया गया और कठोर कानूनों से संख्या का नियमन किया गया। कई देशों में पुलिस बल की मदद से कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और गोद लेने को बढ़ावा दिया गया। भूटान ने व्यापक वित्त पोषित राष्ट्रीय अभियान के जरिए कुत्तों की पूर्ण नसबंदी का लक्ष्य हासिल किया। नीदरलैंड दुनिया का ऐसा देश है जहां आवारा कुत्ते नहीं हैं।
भारत के लिए समाधान
भारत जैसे विशाल देश में संसाधनों की कमी के कारण पशु कल्याण और जन सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना मुश्किल है। हमारे शहरों में एक एकीकृत मॉडल अपनाना होगा—
बड़े पैमाने पर नसबंदी और टीकाकरण का विस्तार
केवल निर्दिष्ट स्थानों और समय पर कुत्तों के भोजन की व्यवस्था
अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार
और सबसे अहम, पशु-प्रेमियों व आम नागरिकों को विरोधी पक्षों की तरह नहीं, बल्कि भागीदारों की तरह संगठित करना।
आखिरकार, आवारा कुत्तों से प्रभावित लोग और उन्हें बचाने वाले दोनों ही एक ही समाज के हिस्से हैं। इस समस्या का समाधान संवाद, सहमति और ठोस नीति से ही निकलेगा।
हर नागरिक का जीवन अनमोल है और इसे सुरक्षित करना राज्य व समाज की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।
(लेखक, चिकित्सक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
आवारा कुत्तों के संकट पर सुप्रीम पहल
