अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यानी आईएसएस पर 18 दिनों के प्रवास के बाद शुभांशु शुक्ला बीते 15 जुलाई को खुशी और मुस्कुराहट के साथ पृथ्वी पर लौट आए। शुभांशु की इस उपलब्धि के साथ भारत की मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान गगनयान मिशन की महत्वाकांक्षाओं को साकार करने की तैयारी शुरू हो गई है। बहरहाल ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला सर्वप्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं, जो अंतरिक्ष स्टेशन के भीतर गए और 18 सफल दिनों का अपना मिशन संपन्न कर लौटे हैं।
बेशक उनसे पहले 1984 में राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय थे, लेकिन उनका दल पृथ्वी के ही चक्कर काटता रहा। अंतरिक्ष स्टेशन की तब व्यवस्था नहीं थी। इस बार शुभांशु और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी के 322 फेरे लगाए और अंतरिक्ष स्टेशन की गति 28,000 किमी प्रति घंटा रही। कुल यात्रा करीब 1.40 करोड़ किमी की रही। यह यात्रा इतनी ब्रह्मांडीय थी कि एक यात्री चंद्रमा पर 35 बार आ-जा सकता था। अब इस कड़ी में गु्रप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का नाम भी जुड़ गया है। जिनका अनुभव निकट भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष मिशनों में मददगार साबित होगा।
एक्सिओम-4 मिशन के तहत स्पेस एक्स कंपनी का ड्रैगन ग्रेस अंतरिक्ष यान 25 जून को क्रलोरिडा से रवाना हुआ था और 28 घंटे की यात्रा के बाद 26 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचा था। पृथ्वी की कक्षीय प्रयोगशाला में, शुक्ला, कमांडर पैगी व्हिटसन, पोलैंड के मिशन विशेषज्ञ स्लावोज विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू ने अगले 18 दिन 60 प्रयोग व 20 आउटरीच सत्र आयोजित करने में बिताए। भारत ने इस एक्सिओम-4 अंतरिक्ष मिशन के लिए 550 करोड़ रुपये निवेश किए थे।
यकीनन यह अकल्पनीय कीर्तिमान है और नया इतिहास है। इस अंतरिक्ष मिशन ने शुभांशु शुक्ला को ‘अवतारी पुरुष’ बना दिया है। अंतरिक्ष में जब भी मानव-जीवन संभव होगा या वनस्पतियां उगने लगेंगी। ऑक्सीजन का पर्यावरण होगा और जल के स्रोत मिल जाएंगे, तब पीढिय़ां उन अदक्वय साहसी और सुदृढ़ मानसिक शक्ति वाले चेहरों को याद करेंगी, जिन्होंने अंतरिक्ष में आकर जीवनोपयोगी स्थितियों की बुनियाद रखी। शुभांशु ने अंतरिक्ष में 7 अति महत्वपूर्ण, बेशकीमती प्रयोग किए, हालांकि पूरी टीम को 60 प्रयोग करने थे। ‘भारत के लाल’ ने मेथी और मूंग के बीजों को अंकुरित किया, जो अंतरिक्ष में पोषण और खाद्य सुरक्षा की दिशा में ‘भोजन’ साबित हो सकते हैं।
अंतरिक्ष में सूक्ष्म जीवों के जीवन, पुनर्जीवन, प्रजनन और जीन परिवर्तनों पर प्रयोग किया। अंतरिक्ष में बीजों की वृद्धि और प्रतिक्रिया का भी अध्ययन किया। भविष्य में अंतरिक्ष मिशन के लिए ऑक्सीजन, बॉयो क्रयूल के स्रोत के तौर पर माइक्रोएल्गी का भी अध्ययन किया गया। अंतरिक्ष उड़ान के दौरान आंखों की गति और समन्वय पर असर को समझने का प्रयोग किया। दिमाग के रक्त-प्रवाह पर फोकस किया गया, जिससे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और उच्च स्तर की कार्बन डाइऑक्साइड के असर को जानने का प्रयास किया गया।
अंतरिक्ष में मानव मांसपेशियों, हड्डियों पर अंतरिक्ष के प्रभावों की भी जांच की गई। यह अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चूंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नगण्य होता है, लिहाजा यात्री की मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। लौटने पर वह अपने पांव पर खड़ा होने और चलने में असमर्थ-सा रहता है। यह यात्रा 18 दिन की ही थी, लिहाजा यात्रियों पर इतने गहरे प्रभाव न पड़े हों, लेकिन फिर भी उनका पुनर्वास किया जा रहा है। उनकी पूरी तरह मेडिकल जांच होगी, इलाज किए जाएंगे, ताकि वे नए सिरे से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार ढल सकें। अंतरिक्ष टीम ने ‘एञ्चवायर्ड इञ्चिववेलेंस टेस्ट’ नामक एक मानसिक प्रयोग में भी भाग लिया, जो अंतरिक्ष में रहने की क्षमता को मापता है। यकीनन शुभांशु के जरिए यह भारत की ‘अपवादीय उपलब्धि’ है।
अंतरिक्ष मानव की खोज, नवाचार और महत्वाकांक्षा का नया ठिकाना बन गया है, जिससे शीर्ष देशों के बीच अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हो गई है। वहां होड़ भी शुरू हो गई है और तमाम देश पृथ्वी के अनदेखे, अनजाने हिस्सों में जाकर अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। इतना ही नहीं अब वे पृथ्वी की कक्षा में बची जगह पर अपने उपग्रह तैनात करने और दूसरे ग्रहों पर नियंत्रण करने में भी जुट गए हैं। एलन मस्क ने मंगल पर ही ‘आखिरी सांस लेने’ की बात कह कर भविष्य को और दिलचस्प बना दिया है यानी अगले कुछ दशकों में अंतरिक्ष का क्षेत्र बहुत आगे जा सकता है। इसरो तेजी से कदम आगे बढ़ा रहा है और भारत की अंतरिक्ष यात्रा की प्रगति दिलचस्प होती जा रही है।
भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप तंत्र को आगे बढ़ाने में सरकारी नीतियों की अहम भूमिका रही है। इसको सबसे तगड़ा बढ़ावा 2022 में रक्षा प्रदर्शनी डेफएक्सपो के दौरान मिला, जब अंतरिक्ष से जुड़ी 75 चुनौतियां शुरू की गईं। अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की भागीदारी पर नजर रखने के लिए नए नियामक इन-स्पेस का गठन हुआ और इसरो ने अपनी प्रक्षेपण सुविधाएं, ग्राउंड स्टेशन तथा परीक्षण सुविधाएं निजी क्षेत्र के लिए खोल दीं, जिससे रक्रतार बहुत बढ़ गई। सरकार ने अपने वादे पर आगे बढ़ते हुए 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर कैपिटल फंड भी शुरू किया है और 52 में से 31 एसबीएस-3 प्रोग्राम सैटेलाइट स्टार्टअप इकाइयों के लिए आवंटित किए हैं। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति को और धार मिल रही है।
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र आर्थिक वृद्धि को रक्रतार देने वाला बड़ा कारक बनने जा रहा है। अनुमान है कि इस क्षेत्र का आकार 2030 तक बढक़र 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है यानी दशक भर के भीतर इसमें 15 गुना बढ़ोतरी हो सकती है। इसे भांपते हुए कई राज्य सरकारों ने स्टार्टअप एवं विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करने वाली अंतरिक्ष नीतियां तैयार की हैं। राज्य सरकारें कृषि, आपदा राहत एवं शहरी नियोजन में भू-अंतरिक्ष तकनीक के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दे रही हैं। नीतिगत दृष्टि से भी केंद्र सरकार ने 2023 में नई स्पेस पॉलिसी लागू की है और 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी है। इससे निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है और अब तक 328 से अधिक स्पेस स्टार्टअप्स उभर चुके हैं।
निस्संदेह, पिछले एक दशक में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। चंद्रयान और मंगलयान अभियान की सफलता ने इसरो की क्षमताओं को प्रदर्शित किया है। मोदी सरकार का आत्मनिर्भरता पर जोर स्वदेशी तकनीक और लागत प्रभावी समाधानों के जरिये रहा है। भारत की कोशिश है कि मानवयुक्त उड़ानों के लिये उसे अमेरिका व रूस पर निर्भर न रहना पड़े। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें चीन हमसे आगे है।
भारत का महत्वाकांक्षी गगनयान अभियान इसी दिशा में इसरो की पहल है, ताकि भारत भी रूस, अमेरिका व चीन के समकक्ष वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभर सके। इसी कड़ी में भारत 2040 तक किसी भारतीय को चंद्रमा पर भेजने की भी महत्वाकांक्षा रखता है। ये असंभव नहीं है, लेकिन अभी हमें इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। दरअसल, एक्सियम-4 मिशन इसरो के लिये अनुसंधान के दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निस्संदेह ऐतिहासिक बदलाव के द्वार पर खड़ा दिख रहा है। ऊर्जावान स्टार्टअप तंत्र और भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई नीतियां इसमें अहम भूमिका निभा रही हैं। अंतरिक्ष विज्ञान का जो भारतीय इतिहास लिखा जा रहा है, यह यात्रा उसका प्रथम अध्याय है, लिहाजा अभी बहुत दूर जाना है। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा है कि शुभांशु के इस मिशन ने एक अरब सपनों को प्रेरणा दी है। बेशक यह भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ की दिशा में ‘मील का पत्थर’ है। शुभांशु के अनुभव और प्रयोगों से बहुत मदद मिलेगी।
-राजेश माहेश्वरी
स्वतंत्र पत्रकार
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम
