Wednesday, August 27, 2025
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गोरखा भाषा के सम्मान पर सवाल नहीं सहेंगे : राजू बिष्ट

दार्जिलिंग। सांसद राजू बिष्ट ने 20 अगस्त को मनाए जाने वाले नेपाली/गोरखा भाषा मान्यता दिवस से पहले दो हालिया घटनाओं को लेकर गहरी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने इन घटनाओं को गोरखा समुदाय के खिलाफ नस्लभेदी मानसिकता का उदाहरण बताया है। न्यायपालिका में भाषा को लेकर अपमानजनक टिप्पणी पर राजू बिष्ट ने बताया कि मंगपू कोर्ट में एक न्यायिक अधिकारी द्वारा नेपाली भाषा में बातचीत करने पर एक वकील को टोका गया और कथित तौर पर कहा गया, “नेपाली भारत की नहीं, नेपाल की भाषा है, इसे कोर्ट में न बोलें। दार्जिलिंग बार एसोसिएशन ने इस टिप्पणी की पुष्टि करते हुए विरोध दर्ज कराया है। श्री बिष्ट ने इस बयान को न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ और संविधान की मूल भावना पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि क्या एक जज को यह नहीं मालूम कि नेपाली भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक है? यह 1992 से भारत की मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय भाषा है और पश्चिम बंगाल में तो 1961 से ही यह राजकीय भाषा है।

बिष्ट ने दूसरी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि सिक्किम विश्वविद्यालय के एक स्नातकोत्तर छात्र ने यह टिप्पणी की कि कक्षा में नेपाली भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह नेपाल की भाषा है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बिष्ट ने कहा कि क्या ऐसे पढ़े-लिखे लोगों को यह नहीं पता कि स्वतंत्रता संग्राम में गोरखा समुदाय का योगदान अतुलनीय रहा है? बिष्ट ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि गोरखा स्वतंत्रता सेनानियों में दलबहादुर गिरी, हेलन लेप्चा, जानबीर सापकोटा, पुष्पकुमार घिसिंग, सुबेदार निरंजन छेत्री, और शहीद मेजर दुर्गा मल्ल जैसे अनेक नाम हैं, जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया।उन्होंने यह भी जोड़ा कि पद्मभूषण तेन्जिंग नोर्गे शेरपा, भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री, राष्ट्रीय महिला फुटबॉल कोच क्रिस्पिन छेत्री, और हॉकी के दिग्गज भरत छेत्री जैसे कई गोरखा भारतीय खेल, सेना, प्रशासन और संस्कृति में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं ।

बिष्ट ने भी इन घटनाओं को व्यवस्थित पूर्वाग्रह और पहचान को मिटाने की कोशिश बताया। उन्होंने कहा कि यह सोच गोरखा समुदाय की भारतीयता पर सवाल उठाने की एक खतरनाक मानसिकता है।बउन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे नस्लभेदी रवैये का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा। हम चुप नहीं बैठेंगे। हमारी भाषा हमारी पहचान है, और यह भारत की ही भाषा है।

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